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पंचमू की ब्वारी सतपुली से – हरीश कण्डवाल

पंचमू कि ब्वारी आजकल बहुत व्यस्त थी। लोकडाउन के बाद से एक तो बुटीक का काम कम हो गया तो अब बुटीक गांव में ही खोलना पड़ा। घर मे कारोबार करने के फायदे भी है और नुकसान भी। नुकसान यह है कि सतपुली में जो काम धन्धा चल रहा था उतना गाँव मे नही चल पाता, दूसरी बात यह कि जब पंचमू की ब्वारी को बीच मे टाइम मिल जाता था तो सोशल मीडिया पर एक्टिव हो जाती थी, लेकिन घर मे 36 काम बीच मे हो जाते है।

आजकल गहथ, उड़द की मंडाई और गेँहू जौ बोने के लिये खेतों की साफ सफाई पर लगी रहती है।  अब फोन पढ़ने के बहाने सारा दिन बच्चों के पास रहता है। इसलिए पंचमू कि ब्वारी अपनी मन की बात नही लिख पायी।

कल रात बहुत मुश्किल से फोन हाथ लगा और सोशल मीडिया देखा तो प्रशंसको के मैसेज से पूरा भरा हुआ था, करवा चौथ के मैसेज, किसी ने लिखा था कि भौजी तुम बहुत दिन से ऑनलाइन नही आये, भारी खुद लगी है। दूसरे ने लिखा था कि भौजी तुम्हारी याद में मुझे घच घच करके भडुळी लग रही थी। अब सबका जबाब दे पाना मुश्किल था। कुछ ने लिखा था कि भौजी कुछ ना कुछ लिखती रहा करो नही तो हमारा सोशल मीडिया पहाड़ के खंदवार हुए मकानों की तरह लगते है। तब पंचमू कि ब्वारी ने सोचा चलो राज्य स्थापना दिवस है, इसी पर अपनी जिकुड़ी की खैरी लिख देती हूँ।

सभी प्रदेश वासियों प्रवासियों, रैवासियो को राज्य स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। कल हमारे पड़ौस में रिंकी का जन्मदिन भी है, और गोधन को उसकी सगाई भी है।  20 साल में पिंकी ने पढ़ाई लिखाई औऱ ग्रेजुएशन भी कर लिया अब उसकी सगाई भी हो रही है। उसी दिन गाँव मे एक लड़का और पैदा हुआ, उत्तराखंड राज्य बनने के अवसर पर उसके राजनीति के कुशल रणनीतिकार पिताजी ने उसका नाम विकास रखा, लेकिन आज तक वह 10वी पास नही कर पाया, बेचारा कम उम्र में ही दारू भांग के नशे में लिप्त हो गया औऱ 8-9 बार उसके मास्टर भी बदल गए, लेकिन उसके हालात नही सुधरे, बेचारे ने दो शादी भी कर ली, एक शहर की और एक पहाड़ की। कभी शहर वाली के साथ रहता है, कभी कभी साल भर में दो चार दिन के लिए गाँव वाली को मिलने भी चला जाता है। क्या करे बेचारा विकास। यही हाल हमारे उत्तराखंड के भी हो रखे हैं।

परसो कोटद्वार गयी थी, लोग कह रहे थे कि विकास नही हुआ है, कंही भी।  मैंने बोला कि किसने कहा विकास नही हुआ है। जो कभी प्रधान होते थे आज ब्लॉक प्रमुख बने हैं, जो ब्लॉक प्रमुख थे वे विधायक बने है। जो विधायक थे वो मंत्री बने है। जो कभी झोला उठाकर गाँव गांव घूमते रहते थे वो अब मर्सडीज में घूमते हैं। जिन्होंने कभी स्कूल नही देखा उनके मेडिकल कॉलेज खुले हैं, जिनको बाड़ी झंगोरू नसीब नही था उनके फाइव स्टार होटल खुले हैं। आप लोग कह रहे हो कि विकास नही हुआ है। अरे विकास हुआ है तभी तो लोग 1000 नाली जमीन के मालिक 100-150 गज में मकान बनाकर रह रहे हैं, गाँव की पुंगड़ी बांझ पड़ी है, मगर दिल्ली देहरादून में घर की छत में लहसुन, धनिया, मेथी, तैडू, प्याज, सब कुछ लगा रखा है।

ज़ब लोकडॉउन हुआ, हमारे कुछ नै जवान लोग घर आये हुए थे, दो महीने गाँव मे रहे, मजाल जो किसी ने घर के काम पर हाथ लगाया हो, सब फोन पर लगे हुए थे, सतपुली से रोज आधा पव्वा और चिकन मटन आ रहा था। अब अगर विकास नही होता तो ये लोग घर मे काम नही करते। सब अमीरों का गरीबी का राशन कार्ड बना है, यह उनके बुद्धि का विकास का ही तो परिणाम है,कि उन्होंने अपना राशन कार्ड गरीबी का बना रखा है।

अब उत्तराखंड युवा राज्य बन गया है, लेकिन नशे में इतना लिप्त है कि सुबह शाम भले घर मे लूण तेल ना हो लेकिन दारू जरूर चाहिए। युवा लोग घूमने फिरने में मस्त है, शाम को दो घूंट पीकर सोशल मीडिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बनकर, बेरोजगारी के आंकड़े बताते हैं, और देश के प्रधानमंत्री को अर्थशास्त्र पढ़ाते है। ऐसे ही हमारा युवा उत्तराखंड भी है, जो आज तक यह नही जान पाया कि उसको बनाया क्यो गया था।  क्योकि जिनके लिए बनाया था वह तो कूड़ी पर ताला लगाकर आ गए हैं, और जो वापिस ताला खोलने जाते भी है तो वँहा रहने वाले दो चार लोग उन्हें वापिस नहीं आना देना चाहते, वह सोचते हैं कि यँहा आकर इसको पता नही कितना फायदा हो जाएगा।

नौकरी  के लिए अब तो सिफारिश के साथ लाखों हाकम सिंह जैसे लोगो को देकर तब जाकर नौकरी मिल रही है। कके ससुर ने अपनों का भला भी कहाँ किया, देख लो ऋषिकेश  और जागेश्वर वाले बाड़ा जी ने अपनों को चिपका दिया है, ऐसे होते है अपने स्वार सरीख और रौ  रिश्तेतदार। हम तो बस पुंगड़ी पर क्वांज और गोरु मोळ निकालने में हीं लगे रहे, जिनके जुगाड़ थे वह बड़े-बड़े लोगो के साथ मिलकर स्वांग रचते रहे और तमशु देखते रहे।

अब देहरादून में कके ससुर जी को ही देख लो, सास जी बताती है कि कभी इनके लिये हम घी और सब्जी यँहा से भेजते थे, अब सब पर धौंस जमा रहे हैं।  विकास नही हुआ तो हम जैसे मध्यम वर्ग के लोगो का जो आज भी गाँव मे दो चार खेतो में हल लगाकर खेतो और गाँव को आबाद रखे हुए है, बस हमारे पास भी झट्ट से रुपये आ जाते तो भाभर में मुंड रिकाणे के लिये हम भी बना लेते, ऐसा मैं नही बल्कि पल्ली ख्वाळ की दीदी बोल रही थी।

अब ज्यादा क्या बोलना तुमने हमने तो अपने मुँह से ही बोलना है, भला तो उसी का होना है जिसका मथीन जुगाड़ है, बाकि तो तुम देख ही रहे हो सारा पहाड़ अब उजाड़ है।

अब जरा मैं भी ब्यखन बगत हो गया है, गौड़ का दूध निकालकर आती हूँ और राई की भुज्जी और रलो रुट्टी बनाती हूँ, सास जी भी कुकणाट कर रही है कि फ़ोन ने ब्वारियो को निपट अलगसण बना दिया है। चलो एक बार फिर सभी को राज्य स्थापना दिवस की  शुभकामनाएं।

– हरीश कंडवाल मनखी, सतपुली, उत्तराखण्ड

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