मनोरंजन

कुंडलिया सृजन – मधु शुक्ला

आती जब “दीपावली”, स्वच्छ दिखें घर द्वार ।

रिश्तों  में  आता  नजर, बेहद   प्रेम   दुलार ।।

 

बेहद  प्रेम  दुलार, प्रफुल्लित रखता तन मन ।

अपनेपन  के  गीत, सुनाती  रहती  धड़कन।।

 

दीपोत्सव  की   रात,  उमंगें  खुशियाँ  लाती ।

लेकर  हर्ष  अपार,  सदा   दीवाली    आती।।

मुक्तक सृजन –

वर्तन खरीदने का रिवाज, धनतेरस में खास।

इससे होती घर में बरकत, है सबको विश्वास ।

दीपोत्सव का प्रथम दिवस यह, लाये नई उमंग,

हर आँगन द्वारे पर दिखता, हँसता हुआ उजास।

— मधु शुक्ला , सतना, मध्यप्रदेश.

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