मनोरंजन

गज़ल – किरण मिश्रा

उम्मीदों  के  पर कुतर  गया कोई,

तमाम  वादों  से मुकर गया कोई!

 

ख्वाब सजा उनींदी आँखों में,

रतजगे  में  उम्र  बसर  गया कोई !

 

बन  के  महताब  रातों  का ,

अश्क़ पलकों में सँवर गया कोई !

 

खेल मोहब्बत का खेल जालिम,

देखो नस नस में उतर गया कोई!

 

मुरझा रही हैं  इश़्किया  बेलें,

जिंदगी को कर सहर गया कोई!

 

ढूँढ  रही  है  हर  शै “किरण”,

हाथ छुड़ा जो रहगुज़र गया कोई!!

#डाकिरणमिश्रा स्वयंसिद्धा, नोएडा

Related posts

ग़ज़ल – रीता गुलाटी

newsadmin

स्मार्ट फोन की गुलाम बनती भारत की नौजवान पीढ़ी – सुभाष आनंद

newsadmin

प्रेरणा व मिशन जामवंत द्वारा कवि गोष्ठी सम्मान समारोह

newsadmin

Leave a Comment