मनोरंजन

कभी उलझी थी दो आँखे – डा किरण मिश्रा

नहीं  करते अगर  इकरार, तो इन्कार रहने दो।

कभी उलझी थी दो आँखे वही अभिसार रहने दो।

 

तुम्हारे लफ़्ज छूकर जब ,

कँवल सा मन ये खिलता था ।

बरसता प्रणय का सावन ,

हाथ से जब हाथ मिलता था।

चलो छोडो़ शिकायत फिर वही इजहार रहने दो।

कभी उलझी थी दो आँखें  वही अभिसार रहने दो।।

 

प्यासे इन लवों से मिलना ,

धड़कनो को तेरी कब रास आया।

तेरी साँसों से साँसों का ,

अलख कब मधुमास आया।

छेड़ी थी प्रेम धुन जिस पल, हृदय में बस वही उद्गार रहने दो।

कभी उलझी थी दो आँखें, वही अभिसार रहने दो।

 

सदायें दे रहा है वक्त ,

बेरहम इस रूसवाई पर ।

चलो अब लौट भी जाओ ,

न मुड़ना जग हंसाई पर।

बनाओ फिर नई  सरकार, हमें बेजार रहने दो,

कभी उलझी थी दो आँखें, वही अभिसार रहने दो।।

– डा किरण मिश्रा स्वयंसिद्धा, नोएडा , उत्तर प्रदेश

Related posts

एक बार फिर ईवीएम कांग्रेस के निशाने पर – राकेश अचल

newsadmin

अरबाज खान ने लांच किया कांट टैल मी का टीज़र और बनारसी पान का पोस्टर

newsadmin

गजल – ऋतु ऋतंभरा

newsadmin

Leave a Comment