कभी एक सच्ची कहानी लिखूंगा,
न जो झुक सकी वह जवानी लिखूँगा।
परख ही नहीं इश्क की आजकल है,
हकीकत वफा की पुरानी लिखूँगा।
गजल गीत कविता बहुत लिख चुका हूँ,
हुआ लुप्त जो आज पानी लिखूँगा।
खुशी से वतन पर फिदा हो गये जो,
उन्ही सैनिकों की निशानी लिखूँगा।
मनुजता बड़ी धर्म से थी तभी की,
अभी एक गाथा सुहानी लिखूँगा।
— मधु शुक्ला. सतना , मध्यप्रदेश .