हँसीं होठ जब मुस्कुराने लगेगे।
कहानी ये दिल की सुनाने लगेगे।
खिला दिल अभी से मचलने लगा है।
मिलेगे सजन गुनगुनाने लगेगे।
न छेड़ो गजल को अभी रात बाकी।
जुटी है भीड़ महफिल सजाने लगेगे।
लबो पे खुशी के तराने तो छेड़ो।
मिलेगे सभी गीत गाने लगेगे।
गजल के सुरताल को रोकना* ऋतु*
सभी गीत को आजमाने लगेगे।
– ऋतु गुलाटी ऋतंभरा,..चंडीगढ़