मनोरंजन

ख्वाबों की किताब – प्रीति पारीक

मेरे सिरहाने रखी ख्वाबों की किताब का,

वह आखरी पन्ना खाली ही रह गया ,

कुछ शब्द खो गए थोड़ा वक्त ठहर गया ,

तू तो अपना था, तू भी बदल गया ,

धीमी चाल थी मेरी, लंबे केश थे मेरे,

आघात ऐसा था ,मेरा सब कुछ बदल गया ,

बेचैनी ऐसी थी , अधर भी सिरह उठे,

धड़कने मानो रुक सी गई,

मेरी मुस्कान पर मरता था जो ,

ना जाने ,कहां छिप गया ,

पैर जैसे जम से गए ,

लब जैसे सिल से गए ,

जो मेरा था वह मेरा ना रहा,

सब कुछ  पीछे छूट गया ,

सब कुछ पीछे छूट गया,,,,,,,,

– प्रीति पारीक, जयपुर, राजस्थान

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