चिंतित माता ताने सीना,
माता जाने कैसे जीना।
पंख खोल वो हटहट करती,
आगे बच्चें रुको वहीं ना।
चीख रही डैना फैलाये,
नहीं हटूंगी जो हो जाये।
माँ मन में ममता चितकारे,
क्रोधित,आशंकित अकुलाये।
माँका क्रंदन दिल दहलाया,
चालक ने गाड़ी लौटाया।
माता का यह रूप अलौकिक,
बच्चों के सर माँ का साया।
भाउक मन में उठी वेदना,
बैठे सोंचे आज चेतना।
माँ से बढ़कर और न दूजा,
माँ के आगे दुनिया अदना।
प्राणी प्राणी माँ का डंका,
मातृ प्रेम में कैसी शंका।
माँ चरणों में दुनिया सारी,
माँ संरक्षक इस जीवन का।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड