मनोरंजन

हिंदी ग़ज़ल – जसवीर सिंह हलधर

दस,बीस,सौ के नोट की कीमत नहीं रही ।

खेती में बैल जोट की कीमत नहीं रही ।

 

सरकार दे रही है मुफ्त आब रोशनी ,

अब कोठियों के वोट की कीमत नहीं रही ।

 

दूल्हों की तो पोशाक हैं अब शेरवानियाँ ,

शादी में पेंट कोट की कीमत नहीं रही ।

 

उसने जरा सी बात पर धोखा दिया मुझे ,

अब आशिकी में चोट की कीमत नहीं रही ।

 

कुश्ती ,कबड्डी खेल के परिधान अब नए ,

दोनों में अब लँगोट की कीमत नहीं रही ।

 

परमाणु के हथियार से दुनिया डरी हुई,

बारूद के विस्फोट की कीमत नहीं रही ।

 

अब टॉप जीन्स पहन के रहती हैं युवतियाँ ,

साड़ी व पेटीकोट की कीमत नहीं रही ।

 

विश्की के साथ मिल रहा मुर्गा भुना हुआ ,

नमकीन दालमोट की कीमत नहीं रही ।

 

खाना बचा हुआ रखा ताज़ा फ़्रीज में ,

बासे हुए अब रोट की कीमत नहीं रही ।

 

मिलने लगी “हलधर” रकम मोटी दहेज में ,

दुल्हन में किसी खोट की कीमत नहीं रही ।

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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