सुर से निकला सँगीत कुछ,
मखमली अन्दाज़ कहता है।
यहीं से उद्गम है,स्नेह का,
यहीं कोई दिल रहता है।
हम घर ढूंढते हैं , दिल का,
मजा मिलता है, महफिल का।
आवाजें-फनकार बन जाती हैं,
झरना मुहब्बतोँ का बहता है।
सुर से निकला सँगीत कुछ
मखमली अन्दाज़ कहता है
यहीं से उद्गम है , स्नेह का
यहीं कोई दिल रहता है
– मुकेश तिवारी- “वशिष्ठ” इन्दौर, मध्य प्रदेश