खूब लुभाता सबको बचपन,
निश्छल मन व निश्छल तन,
सिर्फ़ प्यार की भाषा समझे,
प्यारा भोला भाला बचपन ॥
बचपन की अपनी ही भाषा,
ना समझे वह दुनिया दारी,
रिश्तों की पहचान न जाने,
उसकी अपनी दुनिया न्यारी ।
चंचल नटखट उसकी आँखे,
आँखों आँखों होती बातें,
गोद में आने को ललचाए,
बचपन सबको बहुत लुभाए ।
निर्मल बचपन प्यारा बचपन,
याद सभी को पल पल आए,
गया लौट फिर कभी न आता,
बचपन की बस याद सताए ।
– सुधाकर आशावादी (विनायक फीचर्स)