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संगत – जया भराड़े बड़ोदकर

neerajtimes.com – मन्नू की छुट्टियां शुरू हो गई है। वो अब बहुत खुश है। दादा दादी के साथ उसकी बहुत बनती हैं। अब तक उसने घर में खेलने वाले सारे गेम दादा जी से ही सीखे है। साँपसीढ़ी,पत्ते,  साईकल  चलाना भी दादा जी से ही सिखा है। वो अब समझदार भी हो गया है। वह स्कूल जाता था तब दादाजी ही छोड़ने लेने आया करते थे। स्कूल में वो सब कुछ भूल जाता था। पर अब वो दादा दादी के साथ पूरा दिन रहने लगा। तब देखा कि दादा दादी अब कमजोर हो गए है। उन्हें अब हर पल हर काम में किसी न किसी की जरूरत पढ़ने लगी है। इसलिए मन्नू अपने दादा दादी के संग ही हमेशा रहता था।.

एक बार श्याम उसका खास दोस्त उसे खेलने के लिए बुलाने आया तो उसे साफ मना कर दिया। कहा मेरी तबियत ठीक नहीं है। पर श्याम उसको छोड़ कर कहां जाने वाला था। मन्नू के साथ पूरे दिन घर में ही खेलता रहा। मन्नू से उसने इनडोर गेम खेलना सिख लिया। पर उसकी नजर अब मन्नू पर ज्यादा रहती। उसने नोटिस किया कि मनु दादा-दादी को बहुत अच्छी तरह सम्भाल रहा हैं। घर में कही भी फोन बजने लगता तो भाग के ले आता। उनको अपने हाथों से पानी पिलाता। दरवाजे पर बेल बजती तो भाग के दरवाजा खोल दिया करता। उन्हें दवाई देता। सब कुछ देख कर वो सब कुछ समझ गया कि मन्नू अब बाहर खेलने क्यो कम निकलता है। अब वो जिम्मेदार हो गया है। घर में सुबह से शाम तक घर का हर काम करने लगा है। श्याम ने भी अपने दादा-दादी के घर में जाकर उन्हें भी मदद करने लगा

श्याम जो सारा समय घर के बाहर खेलने में बिता देता था। जो किसी की नहीं सुनता था अपनी गलत सही सारी जिद्दी बातें पूरी करने में लगा रहता था। वो अब मन्नू की संगत में रह कर बहुत सुधर गया था।

– जया भराड़े बड़ोदकर, टाटा सीरी न० -।, टावर १A, ठाणे,  मुंबई, महाराष्ट्र

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