बना लियें हैं जबसे दूरी
फिर न आड़े आए मजबूरी।
सामने उनके न आए कभी
कितनी भी क्यों न रहे जरूरी।
पूर्णता यानि कि फिर ठहराव
भाये मुझको रहूँ अधूरी।
रहे चाहत हमेशा कायम
चाह नहीं हो जाए पूरी।
सदा सरिता सी रहे प्रवाह
मंजूर नहीं हो जाऊँ खारी।
– सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर