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मैंने जब-जब श्रृंगार किया – अनुराधा पांडेय

मैंने जब-जब श्रृंगार किया,तुम तब-तब सुधियों में आये।

मैंने उन प्रेमिल यादों को,

पथ का पाथेय बना डाला।

उस प्रणय पुंज ने ही मुझको,

अति सबल किया ,मुझको पाला।

जीवन के पथ में प्रिय! मैंने,

जब-जब विघ्नों को पार किया, तुम तब-तब सुधियों में आये।

तुमने ही रश्मि दिखाई थी,

जब मेरा चित भरमाया था।

सपनें कितने हैं मूल्यवान,

यह तुमने ही बतलाया था।

इन नैनों का कोई सपना,

मैंने जब-जब साकार किया, तुम तब-तब सुधियों में आये।

रोपे तुमने जो पारिजात,

मेरे जीवन की क्यारी में।

पा मात्र तुम्हारा प्रेमिल जल,

वो खिलने की तैयारी में।

उन प्रेमालंबित सुमनो को,

मैंने प्रिय! जब-जब प्यार किया, तुम तब-तब सुधियों में आये।

लो! गीतों में लिख देती हूँ,

मैंने जब-जब श्रृंगार किया,

तुम तब-तब सुधियों में आये।

– अनुराधा पांडेय , द्वारिका , दिल्ली

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