मैं निशा हूँ निशा मै छलूँगी नहीं,
भोर को बिन दिये मैं ढ़लूँगी नहीं।
हो खुशी या चुभे शूल सी वेदना,
प्रीत की रीत है जो निभाऊँगी मैं।
लेके आगोश में पीर मन की हरूँ,
गम के साये तले मुस्कुराऊँगी मैं।
वक्त फिसले भले रेत जैसा मगर,
छोड़कर पर तुम्हें मैं चलूँगी नहीं।
मैं निशा हूँ निशा मै छलूँगी नहीं,
भोर को बिन दिये मैं ढ़लूँगी नहीं।
तुम न सोचो कि मैं हूँ अँधेरा गहन,
सुरमई साँझ मै सबके हित में बनी।
शीत करती धरा पर युगों से हूँ मैं,
रागिनी, प्रेम सलिला मैं संजीवनी।
मैने तप से स्वयं को है शीतल किया,
सूर्य के ताप से मैं जलूँगी नहीं।
मैं निशा हूँ निशा मै छलूँगी नहीं,
भोर को बिन दिये मै ढ़लूँगी नहीं।
हो खुशी या चुभे शूल सी वेदना,
प्रीत की रीत है जो निभाऊँगी मैं।
लेके आगोश में पीर मन की हरूँ,
गम के साये तले मुस्कुराऊँगी मैं।
वक्त फिसले भले रेत जैसा मगर,
छोड़कर पर तुम्हें मैं चलूँगी नहीं।
मैं निशा हूँ निशा मै छलूँगी नहीं
भोर को बिन दिये मैं ढ़लूँगी नहीं
चाँद , तारे चमकते गगन देख लो,
फिर मेरे साथ तुम सत्य पथ पर चलो।
चेतना धैर्य साहस मिलेगें तुम्हें,
बैठकर प्रेम समता के रथ पर चलो।
प्रातः के साथ दूँगी नवल जिन्दगी,
ख्याति की चाह में मैं गलूँगी नहीं।
मै निशा हूँ निशा मै छलूँगी नहीं
भोर को बिन दिये मैं ढलूँगी नहीं
-डॉ. निशा सिंह ‘नवल’,लखनऊ, उत्तर प्रदेश