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मसअला महज़ – ज्योत्सना जोशी

मसअला महज़ दिल-ए-मसर्रत का था,

उम्र शिकायतों की भी मुकर्रर होती है।

 

रास्ता बदलना बिछड़ना तो नहीं है,

रोशनी को भी आंच की जरूरत होती है।

 

हालातो की तपन नुमायाँ नहीं करते,

ओढ़नी ख़ामोशियों की खूबसूरत होती है।

 

सिलसिलेवार यादों में जो किस्से रहते हैं,

चंद लम्हों की ज़ब्त वो उल्फ़त होती है।

– ज्योत्सना जोशी , देहरादून

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