रंग रंग के हैं फूल धरा पर,
सबकी अपनी अलग सुगंध।
अलग-अलग मौसम में खिलते
महकाते खुश्बू से दिग दिगंत।
कभी किसी से न करते भेद,
देने में मन की खुशियां अनंत।
लहराते क्षणभंगुर जीवन में ऐसे ,
जैसे खुश रहकर जीते सिद्ध संत ।
आता जीवन में जब पतझड़,
पत्ते भी छोड़ देते हैं साथ।
धैर्य धारण कर करते प्रतीक्षा,
रखते समय बदलने की आस।
बदला समय परिस्थिति बदली,
आया जीवन में अब झूम बसंत।
हरियल धरती मन मगन हो ,
मिलने चली अपने प्रिय कंत।
“हरी” रंग रंग के रंग लगायें,
और सबको खूब लगाएं गुलाल।
गले मिले और गिले मिटाएं,
खुशियों से रंगें सबके गाल ।।
– हरी राम यादव, अयोध्या, उत्तर प्रदेश