अच्छे कर्मों का आयुध न्यारा।
हरदम देता अनुपम फल प्यारा।।
शान मान यह अति पावन देता।
सारे कंटक पथ से हर लेता।।
भक्ति-शक्ति का जो आयुध पाता।
जीवन उसका स्वर्णिम बन जाता।।
ईश-कृपा है नित उस पर रहती।
सुख-वैभव की सत गंगा बहती।।
ज्ञान-बुद्धि का जो आयुध पाए।
पास सफलता खुद उसके आए।।
खुशियाँ जीवन में करें बसेरा।
वैभव लक्ष्मी का रहता डेरा।।
युद्ध-भूमि में जो आयुध होते।
बीज सदा ही हिंसा का बोते।।
सैनिक कर में जब आयुध रखते।
दया-भाव को तब कम ही लखते।।
– डॉ ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम,
कानपुर नगर, उत्तर प्रदेश