मिला खून माटी उगाता हूँ दाने।
यही साधना मैं इसी का पुजारी ।।
मरूँ भूख से या चवा जाय कर्जा ।
मुझे अन्न दाता का देते हैं दर्जा ।
न देखा उजाला न खाया निवाला ,
फिरूं नग्न पैरों नहीं है सवारी ।।
यही साधना मैं इसी का पुजारी ।।1
यहां कर्ज से कौन जीता कहां है ।
यहां भूख में कैद मेरा ज़हां है ।
लगाओ न नारा लगा दो सहारा ,
तरीक़ा बता दो पटे ये उधारी ।।
यही साधना मैं इसी का पुजारी । 2
उगायी जो फसलें हुए भाव मिट्टी ।
बढा खर्च खेती जली खाद भट्टी ।
हुआ खून पानी जली है जवानी ,
करूं आत्म हत्या कि घाैपूं कटारी ।।
यही साधना मैं इसी का पुजारी ।।3
कुआ रोज खोदूँ पिऊँ रोज पानी ।
करूं काम खेती यही है कहानी ।
किसानी न भाई नहीं रास आई ,
वहीं छान छप्पर बनी ना अटारी ।।
यही साधना मैं इसी का पुजारी ।।4
फटी पाग मेरी लुटा भाग मेरा ।
यही रोग मेरा यही दाग मेरा ।
जो देते दिलासे दिखाते तमाशे,
ये नेता ये मंत्री बने हैं मदारी ।।
यही साधना मैं इसी का पुजारी ।।5
– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून