कार्य मित्रों को मिला है कुंभ के गुणगान का ,
ले रहे आनन्द ईश्वर भक्त की मुस्कान का।
जाह्नवी तट पर लगा मेला नहाने के लिए,
पर नहीं उपलब्ध होता रवि यहॉ॑ पर ज्ञान का।
मैल संगम में घुले तन का हजारों लाख टन ,
एक तिनका भी न इसमें गिर रहा अभिमान का।
साधु , संतों और धनिकों को मनुजता टेरती ,
पर समय उनको न देते वे कभी पहचान का।
स्नान सच्चा कुंभ का निर्मल ह्रदय ही कर सके,
सामना हर जीव करता ‘मधु’ इसी व्यवधान का।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश