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पढ़ लो क्या कहते नैन – सविता सिंह

मन में नित नई आस लिए,

अरमान भी कुछ खास लिए,

फिरती रहती अब  दिन रैन,

पढ़ तो लो क्या कहते नैन।

 

शिशिर का बसंत हो जाना,

बीज का ये तरु हो जाना,

प्रतीक्षारत रहती बेचैन,

पढ़ लो क्या कहते नैन।

 

बहे मृण्मयी दृगों के अंजन,

कमनीय काया कैसे हो कंचन,

जीवन में लगा हो जैसे बैन,

पढ़ तो लोक्या कहते नैन।

 

विटप भी पर्णरहित हुए,

बूँद गिरे फिर वह खिले,

बरसे सावन तो आवे चैन,

पढ़ तो लो क्या कहते नैन।

– सविता सिंह मीरा, जमशेदपुर

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