मनोरंजन

गीत – जसवीर सिंह हलधर

चार दिन की रोशनी है इन चुनावों के सफर में !

लौट कर आने लगे बगुले परिंदों के शहर में !!

 

रह गए पीछे कहीं जो साथ चलते थे हमेशा ।

अब ठगे से हो गए जो गात मलते थे हमेशा ।

पंख उनके कट चुके हैं चील गिद्धों के नगर में !

लौट कर आने लगे बगुले परिंदों के शहर में !!1

 

मोतियों वाले सपन अब आ रहे हैं याद हमको ।

कीट गंदे आब वाले दे रहे क्या स्वाद हम को ।

सीपियों की कोख बंजर हो गयी है सिंधु घर में !

लौट कर आने लगे बगुले परिंदों के शहर में !!2

 

साथ बगुलों के निभाना भाग्य में ऐसा लिखा था ।

चुग गया मोती हमारे हंस के जैसा दिखा था ।

रोग पीड़ित मछलियों के खार चुभते अंतसर में !

लौट कर आने लगे बगुले परिंदों के शहर में !!3

 

जिंदगी की तल छटी पर सूखती कुछ काइयां हैं ।

जाति मज़हब खोजती कुछ घूमती परछाइयाँ हैं ।

गीत “हलधर “लिख गए हैं भाव की बहती लहर में !

लौट कर आने लगे बगुले परिंदों के शहर में !!4

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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