बदल गए परिवार के, अब तो ‘सौरभ’ भाव।
रिश्ते-नातों में नहीं, पहले जैसे चाव॥
रहना मिल परिवार से, छोड़ न देना मूल।
शोभा देते हैं सदा, गुलदस्ते में फूल॥
घर-घर में अब गूंजते, फूट-कलह के गीत।
कौन सिखाये देश को, प्रेम भाव की रीत॥
होकर अलग कुटुम्ब से, बैठा औरों पास।
झुँड से बिछड़ी भेड़ की, सुने कौन अरदास॥
राजनीति नित बांटती, घर-कुनबे-परिवार।
गाँव-गली सब कर रहे, आपस में तकरार॥
मत खेलो तुम आग से, मत तानों तलवार।
कहता है कुरुक्षेत्र ये, चाहो यदि परिवार॥
‘सौरभ’ आये रोज़ ही, टूट रहे परिवार।
फूट कलह ने खींच दी, हर आँगन दीवार॥
हमने जिनके वास्ते, तोड़ लिए परिवार।
वो दोनों अब एक है, चला रहे सरकार॥
किस से बातें वह करे, किस से करे गुहार।
भटकी राहें भेड़ जो, त्यागे स्व परिवार॥
टूट रहे परिवार अब, बदल रहे मनभाव।
प्रेम जताते ग़ैर से, अपनों से अलगाव॥
करता कोई तीसरा, ‘सौरभ’ जब भी वार।
साथ रहें परिवार के, छोड़ें सब तकरार॥
बच पाए परिवार तब, रहता है समभाव।
दुःख में सारे साथ हो, सुख में सबसे चाव॥
-डॉ सत्यवान सौरभ, उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045