( 1 ) ओ रे माँझी
सोच-विचारे क्या तू ,
चलता चल, तू लहरों पे यहाँ रे !
बीत रही उमरिया, बीत रहे लम्हें…,
आगे की क्या सोचे, पल दो पल जीले !!
( 2 ) ओ रे केवट
बह गया नीर रे,
समय धारा संग, तू चलता चल रे !
कहाँ गए वो गुजरे ज़माने दिन सुनहरे…,
तू तो बस, आज अभी में रमता चल रे !!
( 3 ) ओ रे मल्लाह
हवा के विपरीत चल,
पक्ष में तो, निकला जाए दूर रे !
छोड़ चले तुझे, सभी संगी-साथी….,
अब तो बस, ले प्रभु नाम बढ़ता चल आगे !!
– सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान