मनोरंजन

जंगल म चुनाव – अशोक यादव

पांच बछर बीतगे संगवारी हो, फेर होही जंगल म चुनाव।

आबेदन भराय ल चालू होगे, लिखव फारम म अपन नाव।।

 

बेंदरा मन बने हें कोटवार, हाथ म धरे दफड़ा ल बजाथें।

ए पेड़ ले ओ पेड़ म कूदके, हांका पार-पार के बलाथें।।

 

काली पहाड़ी म बईठक होही, सुन सियान मन सुंतियागें।

हमू बनबो सरपंच कहिके, जानवर मन जम्मों जुरियागें।।

 

शेर कहिथे- मैंय जंगल के राजा आंव, अकेल्ला होहूं खड़ा।

कोन लिही मोर से टक्कर, काखर म दम हे गोल्लर सड़वा।।

 

हाथी कहिथे- तोर कानून नई चलय, जनता के अब राज हे।

जेला चुनही जनता, जीतही चुनाव, तेखर मूड़ी म ताज हे।।

 

लेह-देह म मानगे शेर, कोन-कोन खड़ा होहव ए बतावव।

का-का करहू बिकास तुमन, अपन घोसना पत्र सुनावव।।

 

शेर छाप म शेर खड़ा होही, कोलिहा छाप म कोलिहा ह।

हाथी छाप म हाथी खड़ा होही, बिघवा छाप म बिघवा ह।।

 

शेर कहिथे- जंगल ह स्वर्ग बनही, कोनों नइ मरैंय भूख।

गढ़बो नवा-नवा योजना, सुघ्घर फूल खिलही डारा-रुख।।

 

चुनाव परचार होए लगिच, माड़ा, खोंधरा, बिला, गऊठान।

जीतवाहू कहिके हाथ-पांव ल जोरैंय, हमरे हवय निशान।।

 

वोट डरगे कोलिहा छाप म, भारी मत ले होगे ओखर जीत।

शेर, हाथी अऊ बिघवा पुछी डोलावैंय, इही दुनिया के रीत।।

–  अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़

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