मनोरंजन

हिंदी कविता – रेखा मित्तल

उठाकर कलम लिखने बैठी

आज एक सच्ची कहानी

उमड़ पड़ा ग़मों का सैलाब

जो रोके नहीं रुका

भीग गया कागज़ और कलम

एहसासों के समुद्र में

चाहकर भी उतार न पाई

उनको अल्फाजों में

रीती हो गई शब्दों की गागर

सैलाब समेटे न सिमटा

शायद सही ही हुआ

लिख दूँगी सब कुछ तो क्या मजा

तुम वह भी पढ़ो जो नहीं लिखा

बहुत कुछ अनकहा-सा दफन हैं

दिल की गहराइयों में

सुलझाओ उस सबको

जो अनसुलझा बरसों से पड़ा

चाहकर भी खुद को रोक न पाई

स्नेहिल स्पर्श पा उमड़ पड़ा

शायद तुम अब समझ पाओ

मेरे हृदय की पीड़ा को

जीवन के सफर में

जानकर भी अनजान बने रहे

तुम भी तो मजबूर थे शायद

तभी तो कभी पुकारा नहीं

ज़ख्मों को सहलाए बिना ही

देखकर अपनाया नहीं

अब पढ़ पाओ मेरे मन को

जो अल्फ़ाज़ भी लिख न पाए

– रेखा मित्तल, चण्डीगढ़

Related posts

भूला जमान – अनिरुद्ध कुमार

newsadmin

2471 सम्मान,पुरस्कार उपाधि-प्रशस्ति-प्रमाण पत्रों से सम्मानित डॉ0 अशोक ‘गुलशन’’

newsadmin

ख़ामोशी – प्रीति यादव

newsadmin

Leave a Comment