कलयुग में ना कोई भाई।
बस पटिदारी रोज लड़ाई।।
फेर रहें सब माला मनका।
फायदा हीं कायदा जग का।।
कौन यहाँ पर दानी भाई।
लूट रहें धन मान कमाई।।
बात बात में ज्ञान बघारें।
पास दिखे ना दूर निहारें।।
भटक रहें चिंतित मनमारे।
इत उत धाये साँझ सकारे।।
चंदन टीका लेप लिलारे।
घरघर फिरते रूप सँवारे।।
किधर चलें अब कौन बताये।
जनमानस भटके अकुलाये।।
राह दिखाने देश बुलाता।।
जागो भारत भाग्य बिधाता।
– अनिरुद्ध कुमार सिंह
धनबाद, झारखंड