( 1 ) मेरे
विचार में,
बनता समाज, हम सभी से !
और हम सबकी, आपसी सद्भावनाएं..,
बनाएं इसे मजबूत, सुदृढ़ सदा यहाँ पे !!
( 2 ) विचार
जब मिलें,
समाज में, एक दूजे से !
तब वह समाज, करता चले उन्नति…,
और वहां सुख शांति प्रेम सहयोग बढ़े !!
( 3 ) मेरा
समाज है,
सच मायने में, मेरा दर्पण प्रतिबिम्ब !
जो सदैव दिखलाए, सच्चा प्रतिरूप..,
और करता चले होशियार, देता सबब !!
( 4 ) समाज
हमी से,
और हैं हम, समाज से !
हैं एक दूजे के सभी पूरक अन्योन्य….,
और टिके हैं सहभागिता के सिद्धांत पे !!
– सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान