( 1 ) कर
लेता हूँ
यकीन, बातें सभी
जो, मुझसे मेरे मित्र कहा करते !
और पलटकर जवाब न देता कभी ….,
सदा मान लेता, जो भी कहानी वो कहते !!
( 2 ) हर
कहा झूठ
पकड़, लेता तुरंत
पर, कहता नहीं कुछ प्रतिकार में !
और सुनाए, खरी-खोटी बगैर ही ….,
सदा करता रहता हूँ, इनसे गुफ़्तगू मैं !!
( 3 ) पर
में विश्वास
जब हो जाए
तब, समझ लेना कि, कुछ बिगड़ा नहीं !
और स्वयं को देते, झूठी तसल्ली यहाँ..,
सदा मानते चलना कि, धोखा खाएं वही !!
( 4 ) शर
शरारत तकरार
और हो, हुज्जत
जो भी हो, बस मुस्कुराते, मौन रहो !
और सुनो सबकी, करो अपने मन की …,
सदा अपनी प्रकृति, स्वभाव में बनें रहो !!
– सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान