हाले-दिल उन्हें बताते कैसे ?
इश्क़ था उनसे जताते कैसे ?
मुफलिसी से ही रहे वाबस्ता ,
ये आँख उनसे मिलाते कैसे ?
दिल तो पहले ही दे चुके थे ,
जां बची थी वो गंवाते कैसे ?
उनींदी आँखों में नींदें कहां थी ,
हंसीं ख्वाब हम सजाते कैसे ?
गर न मिलते तुमसे जाने-वफ़ा ,
इतना हसीन धोखा खाते कैसे ?
कैसे हुई ज़िंदगी से बहारे खफा ,
रुखसती के बाद बताते कैसे ?
देख कर हाथ में हाथ गैर का ,
तुझे निराश गले लगाते कैसे ?
– विनोद निराश , देहरादून