वो थे सर्वज्ञ जिनका इक मात्र अंश हैं हम।
दिया जिनने जहां ये सुंदर,
उनके इस ऋण से ऋणी सारा जीवन,
उंगली पकड़ कर चलना सिखाया,
दस्तूर दुनिया का हमको बताया,
रीति रिवाजों से अवगत कराया,
ज्ञान संग विज्ञान का पाठ भी पढ़ाया,
करें बयां क्या उनकी हम खूबी,
जीवन के हर रंग से परिचित कराया।
कैसे उतारें भला ऋण हम उनका,
उनके चरण में स्वर्ग समाया।
देकर सभी कुछ हमको उन्होंने,
सितारों में अपना जहां है बसाया।
उनका ऋणी है ये तन मन,
करते उन्हें शत शत नमन।
देवों से भी ऊंचा दर्जा जो उनका,
नहीं गर वो होते कहां ईश जानें,
उन्हीं ने तो रब से परिचित कराया।
चलो आज हम उनका उन्हीं को करें अर्पण
संस्कार उनके जो करें हम श्रद्धा तर्पण,
उन सभी देव पितरों के चरणों में शत शत नमन।।
देव पितरों …..।
– श्रीमती निहारिका ओम झा, खैरागढ़ राज छत्तीसगढ़