संविधान की उड़ी धज्जियां , गठबंधन परिपाटी में ।
भगत भूल कर भी मत आना, भारत भू की मांटी में ।।
नाम शहीदे आज़म है बस, भाषण वाजी नारों में ।
सरकारी फाइल में अब भी, नाम लिखा हत्यारों में ।
महंगाई की बात करोगे, तो गद्दार कहाओगे ।
मंदिर मस्जिद के झगड़े में, बिना बात फस जाओगे ।
मज़हब खींच रहे भारत को , गृह युद्ध की खाटी में ।।
भगत भूल कर भी मत आना , भारत भू की मांटी में ।।1
पट्टे पर आज़ादी आयी, ब्रिटिश ताना बाना है ।
शासन कालों का है लेकिन, आसन वही पुराना है।
संघर्षों को भूले नेता ,और आपकी फांसी भी ।
बलिदानों पर शर्मिंदा है दिल्ली, मेरठ, झांसी भी ।
कविता कैद लिफाफे में , कवि घूमें चौपाटी में ।।
भगत भूलकर भी मत आना भारत भू की मांटी में ।।2
शहरी लोगों की कीमत है, बूझ नहीं वनवासी की ।
एम ए, बी ए खोज रहे हैं, नौकरियां चपरासी की ।
ढेरों में इज्जत लुटती है जय ढोंगी संन्यासी की ।
रीति वही है नीति वही है सरकारी अय्यासी की ।
सारा माल अडानी की या, अंबानी की आंटी में ।।
भगत भूल कर भी मत आना भारत भू की मांटी में ।।3
सत्य अंहिंसा के झांसे में , राम लला थे तम्बू में ।
भारत मुर्दाबाद लिखा था श्रीनगर-औ-जम्बू में ।
बहुत बड़ी तादात देश में घुसपैठी भी रहते हैं ।
सर से देह जुदा करने की , धमकी अब तो देते हैं ।
कश्यप कुल घर से बेघर है ,केसर वाली घाटी में ।।
भगत भूल कर भी मत आना भारत भू की मांटी में ।।4
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून