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ग़ज़ल – रीता गुलाटी

रूठ जाते हैं मेरे दिल को चुराने वाले,

चोट देते हैं हमे अपना बनाने वाले।

 

आँख मे दर्द का सैलाब वो लाने वाले,

मेरी तकदीर को खुद ही बनाने वाले।

 

खूबसूरत सा बना ख्याब मेरे दिलबर का,

यार मेरा तू कहाँ ख्याब सजाने वाले?

 

साथ मेरा भी नही देते,बडा मुशकिल है,

दर्द मे दिल को नही समझे भुलाने वाले।

 

खेल बाकी है तेरी, मेरी बची उल्फत का,

अपनी धडकन मे मेरे गीत सजाने वाले।

– रीता गुलाटी ऋतंभरा, चण्डीगढ़

 

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