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ग़ज़ल – जसवीर सिंह हलधर

ख़ाक में मिल गए महरवां जाते जाते ।

राह में गुम हुए कारवां  जाते जाते ।

 

बोल जय हिंद सूली पे झूले भगत ,

देश हित में दिया इम्तिहां जाते जाते ।

 

लाख कोशिश न पहुँचूँ मैं मंजिल तलक ,

दुश्मनों ने किए इन्तहां जाते जाते ।

 

बे जुबानी मोहब्बत का क्या फायदा ,

दोस्ती के हुए तर्जुमां जाते जाते ।

 

अंजुमन में रहे हम क़फ़स की तरह ,

जल गए बे सबब आशियां जाते जाते ।

 

बात आयी मोहब्बत की वो रो पड़े ,

खार भी ले गए गुलसितां जाते जाते ।

 

जान “हलधर”अदब में फसी रह गयी ,

चुटकुले पा गए सुर्खियां जाते जाते ।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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