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फिराक गोरखपुरी की जयंती पर काव्य गोष्ठी का हुआ आयोजन

neerajtimes.com गोरखपुर –  रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी के जन्मदिवस के अवसर पर विश्व शांति मिशन के हुमायूँपुर उत्तरी स्थित कार्यालय पर काव्य गोष्ठी व शेरे नशिस्त का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ शायर बहार गोरखपुरी ने किया। गोष्ठी  के पूर्व दाउदपुर चौराहे पर स्थित फिराक साहब की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। गोष्ठी का कर रहे नंदकुमार त्रिपाठी ने सर्वप्रथम सरस्वती वंदना के लिए दिनेश गोरखपुरी को आमंत्रित किया जिन्होंने माता सरस्वती कीवंदना प्रस्तुत कर विधवत शुभारंभ किया  तत्पश्चात वरिष्ठ शायर सुम्बुल हाशमी ने नात सुनाया और अपना शेर पढा़, “अपने घर हम नहीं मिला करते दुश्मनों के बयां में रहते हैं, जाने क्या हो गया है गुलशन को फूल सारे खि़जां में रहते हैं,” इसके बाद संचालक के आह्वान पर हाजी मकबूल अहमद मंसूरी ने फिराक साहब की शान में पढा़, “श्रद्धा सुमन समर्पित है फिराक के चरणों में “, इसके बाद डॉक्टर हनुमान प्रसाद चौबे ने अपनी रचना ,”इरादा पाक है नापाक ना समझो, जहां रस्के कमर है उस मूल को समझो,”सुना कर गोष्ठी को दार्शनिक आयाम प्रदान किया । तत्पश्चात कौशर गोरखपुरी ने अपनी ग़ज़ल ,”वह जल के लाल हुई लाल होकर बुझ भी गई, वही रस्सी वही ऐंठन है क्या किया जाए ,”सुना कर गोष्ठी को नई ऊंचाई प्रदान किया इसके बाद भोजपुरी के सशक्त हस्ताक्षर रामसमुझ सांवरा ने अपनी रचना “मेरे भारत की खुशबू कभी होवे ना कम, महके गम गम गम गम” सुना कर देश भक्ति का संदेश दिया। संचालक नंदकुमार त्रिपाठी ने भोजपुरी दोहा “जलसा बाद रउरे घरे बगले बा संताप, पहिले पेट भरीं उनके नाही ते लागी पाप,” दोहा पढ़कर आपसी प्रेम का संदेश देते हुए वाहवाही लूटी, दिनेश गोरखपुरी ने,” मन का भार हटा दे नटवर, दरस जन जन को तू करा कर,” सुना कर लोगों को ताली बजाने पर मजबूर कर दिया। आयोजक अरुण ब्रह्मचारी ने फिराक की शान में अपनी रचना ,”दुनियाए शायरी की गुलिस्तां फिराक थे,याकूत यानी लाले बदक्शां फिराक थे, “सुना कर गोष्ठी को ऊंचाई प्रदान किया, वरिष्ठ कवि चंद्रगुप्त प्रसाद वर्मा “अकिंचन”भोजपुरी गीत “ए भंवरात तूँ उप्फर परअ सुना कर माहौल में बदलाव लाया, अंत में अध्यक्षता कर रहे डॉक्टर बहार गोरखपुरी ने सभी की समीक्षा करते हुए अपनी रचना ,”चारों तरफ है अनबन क्यों, दिल के अंदर दुश्मन क्यों, गली-गली है अम्न का परचम, राहों में फिर रहजन क्यों,” सुनाते हुए गोष्ठी की समापन की घोषणा किया। अंत में आयोजक अरुण ब्रह्मचारी ने फिराक साहब के बारे में बताते हुये आए हुए सभी रचनाकारों के प्रति आभार व्यक्त किया।

दुनिया-ए-शायरी की गुलिस्ताँ फिराक थे, याकूत यानी लाले बदख्शां फिराक थे।

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