नर तन धारे जब जग पालक, खुशियों के घन छाये,
ऋषि, मुनि मन ही मन मुस्काये, हरि की आहट पाये।
जन्मोत्सव धूम धाम से कर, मंगल गाने गाये,
गोकुल में बजी बधाई प्रभु ,कान्हा बनकर आये।
गोपी, ग्वाले, यशुदा मैया, छवि ईश्वर में खोये,
गोपाला भक्तों के मन में, बीज भक्ति के बोये।
संताप सभी हर कर जन के, दुष्टों को संहारे ,
भव सागर में उलझे मन को, मनमोहन ही तारे।
योगी, भोगी, छलिया, राधे, प्रभु नाम कई धारे,
उनके प्यारे सब भक्त सदा, नारायण उच्चारे।
द्वापर, त्रेता, कलियुग वाले, सब उनको जपते हैं,
कान्हा का जन्म मनाते हैं, जो श्रद्धा रखते हैं।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश