आओ मिलकर चलें,
लड़ें उस तूफान से,
जो पल भर में ही,
नेस्तनाबूत कर देता हैं,
हमारे इरादों को।
आओ मिलकर चलें,
तोड़े उस पहाड़ को,
जिसने रोक रखा है,
रास्ता हमारा उस पार
जाने को।
आओ मिलकर चले,
कांटे सुनहरी फसलों को,
जो तैयार है हमारी भूख
मिटाने को और अन्नदाता
को रुला देने को।
आओ मिलकर चले,
बदलकर अपने आपको
और पलटे इतिहास के पन्नों
को जिन्हें इंतजार था
पलट देने का।
आओ मिलकर चले,
कर दे खुद को निशावर
इतिहास हो जाने को,
जो जीवित रहेगा आने
वाली नस्लों में लहू बनकर।
– दीपक राही, आर०एस०पुरा०,जम्मू, जे० एंड के०