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कविता (बेटी) – जसवीर सिंह हलधर

बेटी का मान करो लोगो ।

इनका सम्मान करो लोगो ।।

 

किस्मत रगड़ो मत ऐड़ी से ।

आज़ाद करो अब बेड़ी से ।।

 

बेटों से कमतर आंको मत ।

अब रीति पुरानी हांकों मत ।।

 

ये रामायण ये गीता हैं ।

कलयुग की ये ही सीता हैं ।।

 

बेटों से कभी न झगड़ी हैं ।

हर काम काज में अगड़ी है।।

 

ये सामाजिक प्रणेता हैं ।

हर युग में रही विजेता हैं ।।

 

ये संस्कार की पूंजी हैं ।

ये संस्कृति की कुंजी हैं ।।

 

सरहद पर लड़ने जाएंगी ।

मंगल तक यान उड़ाएंगी ।।

 

हर जगह तिरंगा गाढेंगी।

दुश्मन का सीना फाड़ेंगी ।।

 

क्रिकेट में शतक लगाएंगी ।

खेलों में पदक दिलाएंगी ।।

 

माँ को सम्मान दिलाएंगी ।

बापू अभिमान बढ़ाएंगी ।।

 

इनको गोदी में आने दो ।

अपनी पहचान बनाने दो ।।

 

भारत माता की शान लली ।

इस जगती का सम्मान लली ।।

 

माने न कभी भी हार लली ।

हैं धरती का शृंगार लली ।।

 

झंझावात में पतवार लली ।

रण में लहरी तलवार लली ।।

 

ये यज्ञ वेदि की हैं भस्मी ।

बेटी दुर्गा बेटी लक्ष्मी ।।

 

बेटी विलियम बेटी चानू ।

बेटी चंदा बेटी भानू ।।

 

गंभीर बात सुन लो यारो ।

अब इन्हें कोख में मत मारो ।।

 

ये भारत माँ की पाँखें हैं ।

बेटी “हलधर” की आँखें हैं ।।

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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