राधा को बदनाम न करना,
अश्रु भरे दृग श्याम न करना।
नेह लगा कर भूल न जाना,
सपने ध्वंस तमाम न करना।
साख तुम्हारी कम हो जिससे,
ऐसा कोई काम न करना।
राज कभी अपने प्रियजन के,
भूले से तुम आम न करना।
चाहत हो यदि प्यार वफा की,
‘मधु’ आशा नीलाम न करना।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश