मनोरंजन

गीत – जसवीर सिंह हलधर

गैर नही है खास बहुत है ,दूर नही है पास बहुत है ।

उसके तीखे व्यंग बोल में ,हास नही परिहास बहुत है ।।

 

दिल में आग लगा देती हैं ,उसकी खट्टी मीठी बातें ।

खुले घाव में नमक लगाती ,उसकी मरहम सी सौगातें ।

लेकिन मुझको अपने पथ पर ,आश नही विस्वास बहुत है ।।1

 

जिसको बड़ा सदा माना है ,मान  दिया मेरी लघुता ने ।

सही समय पर करी आरती ,शब्द शब्द मेरी कविता ने ।

मुझको सच्चे आशीषों की ,भूख नही है प्यास बहुत है ।।2

 

जीवन ही नीलाम कर दिया ,अदब सीखने की आशा में ।

जैसे चातक तप करता हो ,एक बूंद की अभिलाषा में ।

जगह मिली ना मन मंदिर में,इतना ही वनवास बहुत है ।।3

 

अपने दम पर बढ़ता आया ,मैं हूँ कविता का अनुरागी ।

सुविधा सिद्ध नही होती है, होता सिद्ध सदा बैरागी ।

भावों का भूगोल बड़ा है ,कविता में इतिहास बहुत है ।।4

 

आँख खोल देखा अब मैंने ,अपनी खुद ही नादानी को ।

सरिता का जल मान रहा था ,ताल भरे ठहरे पानी को ।

सत्य तथ्य पहचानो “हलधर”,उड़ने को आकाश बहुत है ।।5

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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