जगन्नाथ हे नाथ प्रभु, खड़े आपके द्वार।
दे दर्शन कृत-कृत करो, करवाओ भव पार।1
स्वामी तिहरी कृपा का, नहीं आदि या अंत।
स्वामी तव ब्रह्मांड के, महिमा अतुल अनंत।।2
मौसी के घर को चले, रथ में जग के नाथ।
बलदाऊ भी संग में, बहन सुभद्रा साथ।।3
नौ दिन तक सानंद कर, मौसी के घर वास।
यह रथ यात्रा नाथ की, भरती मन उल्लास।।4
रथ यात्रा से है जुड़ा , उत्सव का माहौल।
भक्तिभाव इतना भरा, जिसकी माप न तौल।।5
– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश