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गीत – (धूप के डेरे) – जसवीर सिंह हलधर

धूप के डेरे उठे अब दून से ,

डोलियां बरसात की आने लगी।

अब पपीहा को मिला है चैन कुछ ,

और कोयल रागिनी गाने लगी ।।

 

चल पड़ी देखो हवायें सिंधु से ,

शुष्क मौसम अब रसीला हो गया ।

मेघ नगपति शीश टकराने लगे ,

चोटियों का गात गीला हो गया ।

रंग धरती का हरा होने लगा ,

आसमां में नित घटा छाने लगी ।

धूप के डेरे उठे अब दून से ,

डोलियां बरसात की आने लगी ।।

 

रूप बदले बादलों का कारवां ,

आह क्या छायी अनौखी सी छटा ।

चाँद तारों से मिचौली खेलती ,

घूमती चित चोर सी चंचल घटा ।

फिर सुबह रवि को ढकेंगी देखना ,

सिंधु से जल भर यहां लाने लगी ।

धूप के डेरे उठे अब दून से ,

डोलियां बरसात की आने लगी ।।

 

जून में जो रो रहे थे आज वो,

दूब के सूखे तने हँसने लगे ।

जो पलायन कर गए थे जून में ,

वो परिंदे वापसी बसने लगे ।

लेखिनी ‘हलधर’ जगी कहने लगी ,

बादलों का नेह भू पाने लगी ।

धूप के डेरे उठे अब दून से,

डोलियां बरसात की आने लगी ।।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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