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गीतिका – मधु शुक्ला

सीख गुरु की प्रेम से गहते रहो,
छाँव में आशीष की हँसते रहो।

दूर करना हो अगर अज्ञान तम,
नाम वाणी का सदा जपते रहो।

चाहिए यदि आपको संतोष धन,
कर्म फल की कामना तजते रहो।

प्राप्त करना लक्ष्य का सानिध्य यदि,
श्रम, लगन से प्रेम अति करते रहो।

हाथ में होगा तभी अधिकार हर,
साथ में कर्तव्य के चलते रहो।

प्राप्त होगा प्रेम अपनापन तभी,
दूर शंका, स्वार्थ को रखते रहो।

मातृ भू का ऋण चुकाना है अगर,
दुश्मनों की आँख में चुभते रहो।
— मधु शुक्ला, सतना, मध्य प्रदेश

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