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महंगे होते माथे के बाल, लोकतंत्र में हुआ कमाल (व्यंग्य) – पंकज शर्मा तरुण

neerajtimes.com – संसार के सबसे बड़े सफल लोक तंत्र पर एक राजनैतिक विद्वान द्वारा लिखी हुई किताब के पन्ने पढ़ रहा था, तभी मोहल्ले में माइक पर उद्घोषणा से ध्यान कुछ देर को भटक गया वो उद्घोषणा थी ही ऐसी कि पिछले तीन माह से मेरा ध्यान भटका रही थी। उस समय वह कहता था कि माथा का बाल ले आओ दो हजार रुपया किलो। साथ ही पुराने मोबाइल पड़े हों तो ले आओ दस रुपए में ले लूंगा। सुन कर बड़ा अचंभित। बाल से भी सस्ते मोबाइल। खैर एक महीना बीता होगा कि वही आदमी पुन: अपनी मोटर साइकिल से मोहल्ले में घुसा और माइक पर अनाउंस करने लगा, माथा का बाल ले आओ तीन हजार रुपए किलो। साथ ही मोबाइल की वही कीमत दस रुपए!आश्चर्य में डूबा सोच रहा था माथे के बालों से क्या कोई काम उत्तेजक दवा तो नहीं बन रही? क्योंकि कुछ लोग कहते हैं कि वन्य प्राणी के अंगों से भी चीन जैसे देशों में कामोत्तेजक दवाइयां बना कर लाखों रुपए में बेची जाती है। पता लगाना ही पड़ेगा। आज मैं अखबार में पुणे में निबंध लिखने की सजा पर लेख पढ़ रहा था कि फिर एक नए अंदाज में माइक पर घोषणा सुनी, माथा का बाल लियाओ चार हजार रुपए किलो साथ ही जीरा भी ले जाओ। दिमाग भन्ना गया यार!इस महान लोकतंत्र में खुल्ले आम क्या हो रहा है माथे के बाल? के इतने भाव इतनी जल्दी कैसे बढ़ रहे हैं। मेरा शक यकीन में बदलता जा रहा था !मैंने प्रण कर लिया कि बाल की कीमत बढऩे की असली वजह क्या है पता लगा कर ही रहूंगा? अर्थात बाल की खाल निकाल कर ही चैन से बैठूंगा। तब तक मैं भी अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगा। शाम को पार्क में नगर के सभी वरिष्ठ विद्वान एकत्र होते ही हैं , मैं भी पहुंच गया और हाय हैलो के बाद मैंने उनके समक्ष बालों के बढ़ते भाव के बारे में चर्चा छेड़ दी। उनमें से कुछ बुजुर्गों ने इस अचंभित करने वाली खबर पर आश्चर्य प्रकट किया।उन में से एक बुजुर्ग ने अपने गंजे सिर पर अपना कोमल हाथ घुमाते हुए कहा कि अवश्य ही बूढ़े लोगों को जवान करने की कोई दवा बनाई जा रही होगी, तभी इसके दाम इतने तेज गति से बढ़ रहे होंगे। दूसरे बुजुर्ग साथी ने कहा कि यह क्रेता बाल खरीदने की आड़ में पुराने मोबाइल सेट छीन रहा है। सोचने वाली बात तो यह है कि दस रुपए में ढंग की चाय नहीं आ रही है तो मोबाइल कैसे दस रुपए में खरीद रहा है? माथे के बाल महंगे खरीद कर? आगे उन्होंने कहा कि मैंने कहीं पढ़ा था कि मोबाइल से पुराना डाटा निकाल कर बेच देते हैंन फिर इन  मोबाइल सेट में जो सोने चांदी के पुर्जे होते हैं उसे गला कर सोना निकाल लिया जाता है। तो एक अन्य साथी ने यह तर्क दिया कि हो न हो यह उन गंजे लोगों के लिए विग बना कर महंगे बेच रहे होंगे जो भरी जवानी में ही अपने माथे के बालों से हाथ धो बैठते हैं? सभी के तर्कों में लोगों को उल्लू बनाने की बू आ रही थी। मैने भी उनके इन कुतर्को से सहमत हो कर कहा कि इसीलिए इसकी कीमत अबकी बार यह चार हजार के पार ले जा रहा है!जैसे मोदीजी कह रहे थे अबकी बार चार सौ पार। राहुल गांधी का परिवार और कांग्रेस के सीधे सादे नेता बेचारे समझ ही नहीं पा रहे थे कि चार सौ पार कैसे हो जाएंगे। इसी प्रकार मैं भी माथा का बाल वाला यह व्यापार जो गली मोहल्ला में चल रहा है समझ नहीं पाया। (विनायक फीचर्स)

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