कर्मठ स्थिर सरकार मिले यह, चाहत जनता रखती है।
प्रेम, एकता, समता को वह, प्यार हृदय से करती है।
राज तंत्र का अंश अभी तक, जिनके पास सुरक्षित है।
लोक तंत्र का चित्र न उनके, मन पर होता अंकित है।
तानाशाही उनकी अक्सर, जन सपनों को डसती है….. ।
ताज कंटकों का धारण कर, न्यायी मुखिया जीता है।
उद्देश्य रखे जो जन सेवा, लांछन का विष पीता है।
गद्दारों की तिकड़म वाजी, से सच्चाई जलती है….. ।
मन चाही सरकार साथ में, जनता धीरज वाली हो।
स्वार्थ परायण नेताओं की, तब ही झोली खाली हो।
उन्नति का पथ जन बल द्वारा,सरकार सदा गहती है…।
— मधु शुक्ला .सतना , मध्यप्रदेश