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आसमान – मधु शुक्ला

दोहा-

आसमान नीला कहे, अपना तजो न धर्म।

कैसे भी हालात हों, मत  भूलो  सद्कर्म।।

मुक्तक

हुआ प्रदूषण से ग्रसित, बदल गया है रूप।

नील वर्ण आकाश की,थी छवि कभी अनूप।।

प्रकृति  सम्पदा  हेतु  अब, लोग रहें बैचैन,

नहीं सृजन में रुचि बने, बैठे  दोहन भूप।

— मधु शुक्ला, सतना,  मध्यप्रदेश

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