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पारे का पारा देखकर – कमल धमीजा

पारे  का पारा  देखकर,

इंसान बहुत घबराता है,

कभी भूल से बंदे  ये बता ,

दो पेड़ कभी भी लगाता है।

 

जब घर से बाहर निकलते हो,

क्यूँ पानी लेकर नहीं चलते हो,

चुनरी से गर्मी जाती है क्या?

छाता लेने से क्यूँ झिझकते हो।

 

क्यों दोष हमेशा कुदरत पर,

हर बार ही तुम मड़ जाते हो,

कभी राहगीरों के लिए सोच,,

इक घड़ा भी तुम रखवाते हो।

 

यह गर्मी का मौसम है यारों,

हर मौसम पर ही तो आता है,

तरबूज खरबूज़ा आम मजे़ से,

खा कर मौज  खूब उड़ाते हो।

 

तुम मत घबराओ मौसम से,

यह बड़े भाग से ही आता है,

यह देश हमारा ऋतुओं का,

सिर्फ़ भारत बर्ष में आता है।

– कमल धमीजा, फरीदाबाद , हरियाणा

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