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घाटी – झरना माथुर

neerajtimes.com – एक बहुत सुंदर घाटी जो पेड़ो, जंगलों और पर्यटन स्थलों से भरी थी। सड़क के किनारों पे बादलों से बाते करते पेड़। बादल भी खुशी में वर्षा करते। ठंडी ठंडी हवाएं लोगों को आनंदित करती। घाटी की सुंदरता को देखने के लिए लोग दूर दूर से आते।

एक दिन घाटी में विकास आया। उसने धीरे धीरे पेड़ो, जंगलों और नदियों से दोस्ती करनी शुरू कर दी।घाटी को कुछ दिन तो बहुत अच्छा लगा। लेकिन कुछ दिनों बाद विकास ने अपना वर्चस्व बढ़ाना शुरू कर दिया। अब उसने पेड़ों और जंगलों को ही खत्म करना आरम्भ कर दिया और कंक्रीट के जंगल और इमारतों का निर्माण करना आरम्भ कर दिया।अब जहां पहाड़ दिखते थे। वहां ऊंची ऊंची इमारतें दिखने लगी। विकास की इन हरकतों से जलवायु में परिवर्तन आना शुरू हो गया। अब तक घाटी में जो ठंडी हवाएं चलती थी। वो हवाएं अब गरम होने लगी। पर्यटन स्थलों पे अप्राकृतिक छेड़ खानी होने लगी। पेड़ो के न होने से बादलो ने भी मुंह फेर लिया।अब वो भी नही आते और न ही वर्षा करते। नदियां सूखने लगी।ताप बढ़ने लगा।जंगल जलने लगे।तापमान जो कभी 30 डिग्री से ऊपर नहीं जाता था। वो अब 40 डिग्री से ऊपर जाने लगा। नदियों पे बांध बना बना के उन्हें छलनी कर दिया। विकास की हर योजना पेड़ो और जंगलों को काट के या खत्म करके ही बनती। रफ्तार को बढ़ाने के लिए फोर लेन बनने लगी।भीड़ और बड़ने लगी।

अब घाटी के लोग परेशान है कि ये विकास लोगों को किस ओर ले जा रहा है..? क्या प्रकृति से खिलवाड़ करके भी विकास संभव है..? क्या निजी स्वार्थ से भरा ये विकास सिर्फ रफ्तार को बढ़ा रहा है और लोगों की सांसों और सुकून को कम कर रहा है।

इसपे बात आती है कि हम एक दिन पर्यावरण दिवस मनाए।या फिर यूं कहे कि कुछ पेड़ लगा के फोटो खिंचवा के मीडिया पे डाल दें। उन पेड़ों को कोई देखने वाला नहीं न ही कोई पानी देने वाला। ऐसे में हम क्या विकसित हो पाएंगे। अब ये समझना जरूरी है।

– झरना माथुर , देहरादून, उत्तराखंड

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