चलें
बोलें मृदुल वाणी,
और बनाते रहें मित्र सदा !
कभी किसी से कटु ना बोलें…..,
और करते चलें सभी से प्रेम यहाँ !!1!!
भलें
बनें और दयालु
और करते चलें सदा भला !
कभी किसी को दुःख ना पहुँचाएं….,
और बनें रहें संतोषी सहिष्णु यहाँ !!2!!
करें
कहें सदा वही
जो लगे स्वयं को अच्छा यहाँ !
कभी किसी को भला बुरा ना कहें……,
और सभी से करें समान व्यवहार सदा !!3!!
चलें
सहें ना बोलें
औरों से अपनी मन व्यथा कथा !
कभी किसी को प्रकट ना करें…..,
और ना ही बतलाएं मन की अवस्था !!4!!
खिलें
मुस्कुराएं हँसते रहें
और चलें बिखेरे प्रेम मकरंद सदा !
कभी किसी को यहाँ पे ना सताएं……,
और चलें महकाते मन बगिया यहाँ !!5!!
-सुनील गुप्ता (सुनीलानंद), जयपुर, राजस्थान