नई चेतना जाग रही है, अपने भारत वर्ष में।
जड़ता सारी परे हटाना, जुटना नव उत्कर्ष में।
मूल्यवान सांस्कृतिक धरोहर, पहचाने अब विश्व भी,
स्वर्णिम विगत सतह पर लाकर, डूबे जन-मन हर्ष में।
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छिपी हुई हैं विविध धरोहर, भारत के हर कोने में।
जो आनंद मिले पाने में, मिल न सके वह खोने में।
भारतवासी यत्न करें अब, अपने-अपने स्तर पर,
हर काले धब्बे अतीत के, जुट जाएँ सब धोने में।2
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जो कुछ हमसे बिछड़ गया था, उन्हें सहेजें सब मिलकर।
गौरव बढ़े राष्ट्र का जग में, नव्य प्रगति पथ पर चलकर।
चिन्ह दासता के ढोकर अब, लाभ नहीं है रोने में,
स्थापित हो पुनः विरासत, यत्न करें सारे जमकर।
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हमें निज राष्ट्र को फिर से जगत के शीर्ष लाना है।
पुनः सोने की चिड़िया देश को मिलकर बनाना है।
विरासत को धकेला पृष्ठ में साजिश नियोजित थी,
छिपाई हर धरोहर को जतन से खोज लाना है।
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उपेक्षा की गई सदियों सनातन मिट नहीं पाया,
बचा कर धर्म को अपने शिखर पर आज लाना है।
जमी थी धूल संस्कृति पे सनातन को भुला बैठे,
पड़ी जो गर्द दर्पण पर उसे मिलकर हटाना है।
– कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश